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फोर्ड की बंद फैक्ट्रियों को इलेक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में किया जा सकता है कन्वर्ट: रिपोर्ट

इंडियन मार्केट और इंटरनेशनल मार्केट्स के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स तैयार हो सकते हैं कंपनी की दो फैक्ट्रियों में

फोर्ड को भारत में अपनी फैक्ट्रियां बंद किए हुए आज 7 महीने बीत चुके हैं और कंपनी इन्हें बेचकर 2 बिलियन डॉलर की रिकवरी करना चाहती है। कंपनी का ये फैसना आश्चर्यजनक बिल्कुल नहीं था। 2012 से कंपनी ने उम्मीद लगाई थी देश का ​मीडिल क्लास वर्ग उपर उठेगा और 2020 तक ये उसके लिए भारत टॉप 3 मार्केट में से एक होगा। मगर इसके उलट कंपनी का यहां मार्केट शेयर 1.5 प्रतिशत से भी कम ही रहा और नतीजतन कंपनी को यहां से जाना पड़ा। 

इस दरम्यां फोर्ड ने भारत के दक्षिण और पश्चिमी तटों पर मौजूद दो फैक्ट्रियों में भारी निवेश करते हुए घरेलू बाजार और एक्सपोर्ट करने के लिए कारों और एसयूवी की मैन्युुफैक्चरिंग की। मगर दो दशकों में कंपनी को 2 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा और अफोर्डेबल कारें बनाने वाली कंपनियों के आगे ये टिक नहीं पाई। 

Ford Plant

मगर कंपनी के पास अपने नुकसान की कुछ भरपाई करने का मौका जरूर है। पिछले सप्ताह इकोनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडू सरकार और फोर्ड के बीच उसकी फैक्ट्री को इलेक्ट्रिक व्हीकल तैयार करने और एक्सपोर्ट करने के लिए एक ईवी मैन्युफैक्चिरिंग प्लांट में तब्दील करने को लेकर बातचीत चल रही है। न्यूजपेपर को फोर्ड ने ये भी कहा है कि वो अपने इंडियन प्लांट्स को एक्सपोर्ट बेस भी बना सकती है। 

माना जा रहा है कि फोर्ड का ये कदम उसके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। हालांकि फोर्ड के लिए अब भारतीय बाजार में अपनी जगह बनाना काफी मुश्किल होगा क्योंकि इसी तरह 5 साल पहले जनरल मोटर्स को भी भारत में अपना कामकाज बंद करना पड़ा था। मगर 1.4 बिलियन आबादी वाले इस देश के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स तैयार करना एक अच्छा मौका साबित हो सकता है। 

फिलहाल भारत की सबसे बड़ी कार मैन्युुफैक्चरिंग कंपनी मारुति के पोर्टफोलियो में अभी एक भी इलेक्ट्रिक कार मौजूद नहीं है। ऐसे में फोर्ड जैसी कंपनियों के लिए इस सेगमेंट में उठने का ये सुनहरा मौका हो सकता है। 

हालांकि इलेक्ट्रि​क कारों का देश की ओवरऑल कार सेल्स में महज 1 प्रतिशत का योगदान है। मगर इसके बावजूद ये सेगमेंट धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन की ओर से जारी किए गए मार्च के डेटा को देखें तो इलेक्ट्रिक कार और एसयूवी की सेल्स में 324 प्रतिशत का उछाल आया है। 

भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदुषित शहर बसते हैं और 2070 तक देश में कार्बन एमिशन कम करने का लक्षय रखा गया है जिसके लिए कई जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। फोर्ड इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोडक्शन से जुड़ी पीएलआई स्कीम के तहत स्टेट सब्सिडी प्राप्त करने के लिए चुनी गई कंपनियों में से एक है। इसका फायदा उठाते हुए ये अमेरिकन कार मैन्युफैक्चरर यहां नए अवतार में नजर आ सकती है। 

फोर्ड का केस देश के दूसरे मैन्युफैक्चरर्स के लिए एक बड़ा सबक है। बता दें कि कई सालों तक जनरल मोटर्स का भारत में प्लांट बंद पड़ा रहा जिसकी लेबर यूनियन ने इसे चीन की ग्रेट वॉल मोटर्स को बेचे जाने के फैसले के बीच बाधा भी डाली। 

फोर्ड के पोर्टफोलियो में फिगो हैचबैक से लेकर कॉम्पैक्ट एसयूवी इकोस्पोर्ट और एंडेवर प्रीमियम एसयूवी जैसे प्रोडक्ट्स रहे हैं। मगर इस कंपनी के लिए मास मार्केट अफोर्डेबल कार बनाने वाली मारुति और हुंडई जैसी कंपनियों के आगे टिक पाना मुश्किल रहा। 

प्रीमियम मॉडल्स के केस में अब चीजें बदलती हुई देखी जा सकती है। इस साल जहां मर्सिडीज बेंज की ओर से अपनी फ्लैगशिप एस क्लास सेडान का लोकल असेंबल किया जाने वाला ईक्यूएस नाम का इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च किया जाएगा। तो वहीं बीएमडब्ल्यू भारत में कुछ इलेक्ट्रिक प्रोडक्ट्स को शोकेस करेगी। यदि भारत सरकार इंपोर्ट ड्युटी कम कर देती है तो टेस्ला जैसी कंपनी भी भारत में अपने प्रोडक्ट्स उतार सकती है। 

मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोकस काफी साफ है। वो मेक इन इंडिया प्लान के तहत लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहते हैं जिसके तहत यहां फोर्ड के लिए अपने नुकसान की भरपाई करने का एक अच्छा मौका है। 

फोर्ड की बंद फैक्ट्रियों को इलेक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में किया जा सकता है कन्वर्ट: रिपोर्ट
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