Hyundai Creta Panoramic Sunroof
ऑटो इंडस्ट्री

अब Auto Manufacturers को 2022 तक हर हाल में तैयार करनी होंगी Fuel Efficient कारें

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस समझौते के दौरान वादा किया था कि भारत कार्बन उत्सर्जन कम करने की ​दिशा में आक्रामक रवैया अपनाएगा और अब उसी के चलते देश में अगले साल से सख्त तक corporate average fuel efficiency (CAFE) नॉर्म्स लागू किए जा रहे हैै जिसके तहत ऑटोमैन्युफैक्चरर्स को अच्छे माइलेज देने वाली और कम प्रदूषण फैलाने वाली कारें तैयार करनी होंगी। हालांकि ऑटो इंडस्ट्री सरकार के इस फैसले से बिल्कुल खुश नहीं है। 

भारत में 2022 तक corporate average fuel efficiency (CAFE) नॉर्म्स लागू होने जा रहे जिसके तहत अब भारत में सभी कार मैन्युफैक्चरर्स को फ्यूल एफिशिएंट कारें तैयार करनी होंगी। वैसे तो इस पॉलिसी को पहले ही लागू कर दिया जाता मगर ऑटो मैन्यूफैक्चरर्स ने सरकार से इस पॉलिसी को लागू करने के लिए समय में छूट मांगी थी। अब भारत सरकार ने फैसला कर लिया है कि अप्रैल 2022 तक हर हाल में ये पॉलिसी लागू कर दी जाएगी और इसे आगे टालने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है। बता दें कि देश में carbon emissions को कम करने के लिए ऑटोमैन्युफैक्चरर्स से इलेक्ट्रिक और हायब्रिड कारें तैयार करने के लिए कहा जा रहा है। 

Petrol Pump

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सरकार CAFE norms लागू करने के समय को आगे बिल्कुल टालने के मूड में नहीं है। हालांकि उन्होनें ये भी कहा कि मैन्युफैक्चरर्स इस दिशा में गंभीरता से काम करते हैं तो उन्हें कुछ समय की मोहलत दी जा सकती है। 

Maruti Suzuki और Hyundai Motor corporations जैसी बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली  Society of Indian Automobile Manufacturers (SIAM) ने सरकार से इस पॉलिसी को दो साल आगे टालने का अनुरोध किया था। इसके लिए 2 मार्च को सियाम ने ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री के अधिकारियों के साथ एक बैठक में भाग लिया था। 

बता दें कि CAFE rules साल का पहला फेज 2017 में शुरू किया गया था जहां पैसेंजर्स कारों पर 130 ग्राम प्रति किलोमीटर एमिशन कम करने के लिए कहा गया था और इसके लिए कंपनियों को मार्च 2022 तक की मोहलत दी गई थी। अब इसका दूसरा चरण 1 अप्रैल 2022 से शुरू किया जाएगा जहां कार्बन एमिशन 113 ग्राम प्रति किलोमीटर तक लाने का प्रस्ताव रखा गया है। 

कंपनियों ने सुनाई अपनी पीड़ा

इंडियन कारमेकर्स ने सरकार को बताया है कि पिछले दो सालों से उनकी सेल्स में काफी गिरावट आई है ऐसे में इस तरह की सख्त पॉलिसी के अनुरूप काम करने के लिए उनके पास फंड्स की कमी है। बताया गया है कि 2019 में आर्थिक मंदी और 2020 में कोरोना महामारी के कारण पैसेंजर व्हीकल्स की वार्षिक बिक्री में 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। 

दूसरी तरफ यदि इस तरह की पॉलिसी लाई जाती है तो देश से ज्यादा फ्यूल इंपोर्ट कराने का बोझ तो कम होगा ही साथ ही में प्रदूषण कम करने की दिशा में भी ये काफी कारगर साबित होगा। 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस समझौते के तहत वादा किया था भारत कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में काफी आक्रामक रूप से काम करेगा,ऐसे में corporate average fuel efficiency नॉर्म्स एक एजेंडा के तौर पर देखा जा रहा है। 

अब Auto Manufacturers को 2022 तक हर हाल में तैयार करनी होंगी Fuel Efficient कारें
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