कुछ साल पहले भारत सरकार की ओर से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को एक मिशन के रूप में अपनाने के लिए कहा गया था कि 2025 से लेकर 2030 तक भारत में Electric Vehicles की बिक्री पर जोर दिया जाएगा। वहीं ग्राहकों के लिए स्थितियां इस तरह से भी बन रही है कि वो खुद अब इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर शिफ्ट हो सकते हैं। पेट्रोल डीजल के बेतहाशा बढ़ते दाम भी इसकी प्रमुख वजह बन सकती है। हमने इस आर्टिकल के जरिए 2 व्हीलर सेगमेंट को लेकर एक आकलन किया है जहां हम बताएंगे कि आखिर क्यों अब जल्द ही परिस्थितियां बदलने वाली है।
फ्यूल प्राइस बढ़ने से गहरा असर पड़ेगा
भारत में इस वक्त रोजना पेट्रोल के दामों में इजाफा हो रहा है जिसका सीधा असर मिडिल क्लास की जेब पर पड़ रहा है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि नए ग्राहक इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के ज्यादा से ज्यादा ऑप्शंस की तरफ देख सकते हैं। दूसरी तरफ कंपनियां भी इस बात को लेकर पूरी तरह से तैयार है जो अब नए नए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को लॉन्च कर रही है। इन व्हीकल्स में काफी ज्यादा रेंज वाले स्कूटर और बाइके भी शामिल है तो वहीं 50,000 से कम प्राइस वाले सस्ते स्कूटर्स शामिल है। दूसरी तरफ 25 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को चलाने के लिए तो किसी तरह के लाइसेंस की भी जरूरत नहीं है जिससे उनपर रजिस्ट्रेशन का भी कोई खर्चा नहीं आता है।
सब्सिडी देकर सरकार भी डिमांड बढ़ाने के लिए तैयार
हालांंकि सरकार इस वक्त Electric Cars की ही खरीद पर सब्सिडी और टैक्स में छूट देने जैसी पहल शुरू कर रही है,मगर 2 व्हीलर्स पर कोई रियायत देने की बात फिलहाल नहीं कही गई है। हालांकि,Electric Bikes और स्कूटर्स की डिमांड बढ़ाने के लिए इनके दामों में कमी जरूर की जा सकती है।
शेयर्ड इलेक्ट्रिक मोबिलिटी
देश में ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के आ जाने से शेयर्ड इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को भी बढ़ावा मिल सकता है। हम ई रिक्शा के रूप में इसका बेहतरीन उदाहरण देख रहे हैं जिनकी डिमांड काफी बढ़ चुकी है और ये कार्गो और पैसेंजर्स दोनों की सेवा में लग रहे हैं। दूसरी तरफ ओला,उबर जैसी कंपनियां अपने बेड़े में ई बाइक्स को शामिल कर सकती हैं जिससे कि फेयर चार्ज में कमी आ सकती है और ग्राहक इनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकते हैं। महिंद्रा और हीरो भी ये बात कह चुकी है कि वो फ्लीट ऑपरेटर्स को ध्यान में रखते हुए भी ज्यादा क्षमता के बैट्री पावर वाले लॉन्ग रेंज वाले व्हीकल्स तैयार करने के बारे में सोच रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2030 तक Electric 2 Wheelers का मार्केट शेयर 35 प्रतिशत होगा जिसमें 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा पर्सनल सेगमेंट का हो सकता है तो वहीं 20 से 30 प्रतिशत योगदान कमर्शियल व्हीकल का हो सकता है। माना ये भी जा रहा है कि सबसे बड़ा बदलाव Electric 3 Wheelers के रूप में भी नजर आ सकता है जहां 2030 तक इनका मार्केट शेयर 65 से 75 प्रतिशत हो जाएगा। फिलहाल इलेक्ट्रिक 3 व्हीलर के रूप में ई रिक्शा जैसे प्रोडक्टस ही सामने आएं हैं और आने वाले समय में हम इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा जैसे प्रोडक्ट्स भी देखेंगे।
स्टार्ट अप्स आ रहे आगे
भारत मेंAther Energies ,Revolt,Tork,Pure EV जैसे कई स्टार्ट अप्स ऐसे हैं जो अपनी ओर से Affordable Electric Scooters and E-Bikes लॉन्च कर चुके हैं। इन स्टार्टअप्स के द्वारा पेश किए जा रही कई ई-बाइक्स और स्कूटर्स तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे फीचर्स से लैस भी है और इनके डिजाइन में भी कोई कमी नहीं है। भारत में कई आईआईटी में स्टूडेंट्स भी लगातार ई बाइक्स बनाने की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी पर रिसर्च कर रहे हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर में हो रहा सुधार
भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को एक अच्छी स्टार्ट नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का ना होना था। मगर,अब इसको बेहतर रूप से तैयार करने के प्रयास शुरू हो चुके हैं। एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत को इलेक्ट्रिक व्हीकल का प्रोडक्शन करने और चार्जिग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए करीबन 180 बिलियन के निवेश की आवश्यकता है। दूसरी तरफ भारत में बैट्रियां बाहर से इंपोर्ट कराई जाती है मगर अब “Make in India” अभियान के तरह इनका प्रोडक्शन भारत में ही हो सकता है।
इस दिशा में बढ़ने के होंगे कई फायदे
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की तरफ बढ़ते भारत के कदम काफी फायदेमंद होंगे जिसके दूरस्थ परिणाम देखने को मिलेंगे। पहला तो ये कि भारत में दिल्ली,कोलकाता,बेंगलुरू जैसे शहरों में प्रदुषण की समस्या से किसी हद तक निजात मिलेगी वहीं, भारत पूरी दुनिया में ईको फ्र्रैंडली माहौल बनाने वाले देशों की सूची में भी शामिल हो जाएगा जो ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ने से रोकने की अपनी इच्छाशक्ति को पुरजोर रूप से दर्शा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों पर नियंत्रण रखने में भारत भी निभा सकता है अपनी भूमिका
भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की डिमांड बढ़ने से इसका काफी असर फ्यूल की डिमांड पर पड़ सकता है। ऐसे में डिमांड नहीं मिलने से बाद में फ्यूल प्राइस में कमी आ सकती है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हम इसकी कच्चे तेल की कीमतों पर नियंत्रण रखने में अहम भूमिका भी निभा सकते हैं।
बाहरी निवेश से बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
देश के साथ साथ कुछ विदेशी कंपनियां भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने से लेकर प्रोडक्शन संबंधी काम शुरू कर सकती है जिससे यहां रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। सरकार भी अपनी ओर से स्वदेसी अपनाओ जैसी नीतियों के जरिए भारतीय कंपनियों को पूरा समर्थन देने के लिए तैयार है जो अपना कामकाज बढ़ाएंगी और लोगों को रोजगार भी देगी। भारत के आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में नए नए प्लांट लगाए जा सकते हैं जिससे वहां के निवासियों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। सरकार ये बात कह चुकी है कि ऑटोमोबाइल सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एक अहम जिम्मेदारी निभाने की काबिलियत रखता है।